बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

मुफ्त हुए बदनाम तुम्हारे शहर में आके'

मुफ्त   हुए बदनाम   तुम्हारे  शहर  में आके'
मिला एक अलग ही नाम तुम्हारे शहर में आके |

आये थे अपने दिल में हम खुशियों का अरमान लिए,
मिल गए अश्क  तमाम  तुम्हारे  शहर  में   आके |

अजनबियों की इस बस्ती में अपना ढूँढने हम निकले,
मिला  न   कोई   मुकाम  तुम्हारे  शहर में आके |

वक़्त ने कैसा पलता पलड़ा कैसे तुम्हे बताएं हम,
काँप   उठे   अरमान   तुम्हारे   शहर में आके |

हम हैं 'सारंग' इक परदेशी रास्ता भूल गए थे हम,
हो   गई  सुबह   से शाम तुम्हारे शहर में आके |

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