सहर के आलम में खोया हूँ ,होती क्या है शाम ना जानू . इक आस लिए दिल में फिरता हूँ ,होगा क्या अंजाम ना. मुझसे मेरा पता ना पूछो ,मैं तो खुद का नाम ना जानू. जो कहना है खुलके कहो मैं नज़रों का पैगाम ना जानू .... कभी कभी जब तन्हा बैठता हूँ तो मेरे मन में कुछ हलचल होने लगती है और वही हलचल मेरे शब्दों के माध्यम से कागज़ पर उतर आती है ...और उसी हलचल को मैंने अपने इस ब्लॉग में डाला है. गगन गुर्जर "सारंग"
बुधवार, 23 मार्च 2011
जज़्बात: ......वक़्त मिले तो हमें भी याद कर लेना |
जज़्बात: ......वक़्त मिले तो हमें भी याद कर लेना : "प्यार और दोस्ती का गहरा नाता है , बिना दोस्ती के कोई कहाँ प्यार पाता है , ये रिश्ते ही तो हैं जिन के बल पर जीते हैं लोग, और इन तीनो का संग..."
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