जिंदगी इस तरह से पिघलती रही,
तुझसे मिलने की चाहत मचलती रही
इक किनारे पे परवाना तपता रहा,
इक किनारे पे शमा भी जलती रही.
तुझसे मिलने की चाहत मचलती रही
इक किनारे पे परवाना तपता रहा,
इक किनारे पे शमा भी जलती रही.
ख्यालों में खोया रहा मेरा दिल,
इन लवों पे ग़ज़ल कोई बनती रही.
हम वो शायर हैं जिसकी हर इक शायरी,
तेरी सूरत पे आके सिमटती रही.
हम वो शायर हैं जिसकी हर इक शायरी,
तेरी सूरत पे आके सिमटती रही.
अपनी हर सांस ने नाम तेरा लिया,
नाम से तेरे धड़कन धड़कती रही.
हर दिल में बनता तेरा बुत रहा,
हर पलक बस तेरा ख्वाब बुनती रही.
तन्हाइयों में भी है चैन अब,
महफ़िलों में तो रंगत बरसती रही,
तेरी तारीफ़ में संग छोड़ा अल्फाजों ने,
'सारंग ' की कलम फिर भी चलती रही.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें